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कविता

उठ अब, ऐ मेरे महाप्राण

माखनलाल चतुर्वेदी


उठ अब, ऐ मेरे महा प्राण!

आत्म-कलह पर
विश्व-सतह पर
कूजित हो तेरा वेद गान!
उठ अब, ऐ मेरे महा प्राण!

जीवन ज्वालामय करते हों
लेकर कर में करवाल
करते हों आत्मार्पण से
भू के मस्तक को लाल!

किंतु तर्जनी तेरी हो,
उनके मस्तक तैयार,
पथ-दर्शक अमरत्व
और हो नभ-विदलिनी पुकार;

वीन लिए, उठ सुजान,
गोद लिए खींच कान,
परम शक्ति तू महान।

काँप उठे तार-तार,
तार-तार उठें ज्वार,
खुले मंजु मुक्ति द्वार।

शांति पहर पर,
क्रांति लहर पर
उठ बन जागृति की अमर तान;
उठ अब, ऐ मेरे महा प्राण!


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